BA Semester-5 Paper-2B History - Socio and Economic History of Medieval India (1200 A.D-1700 A.D) - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.)

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2788
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- समाज की प्रत्येक बुराई का जीवन्त विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है। विवेचना कीजिए।

अथवा
कबीर की सामाजिक चेतना का उद्घाटन कीजिए।
अथवा
कबीर के सामाजिक सुधार सम्बन्धी विचारों की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
अथवा
कबीर ने पाखण्ड का जोरदार विरोध किया है। समझाइये।
अथवा
कबीरदास को सामाजिक सुधारवादी कवि क्यों माना गया? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
अथवा
कबीर के समाज सुधारक रूप को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
"कबीर ने समाज सुधार के लिए अपनी वाणी का उपयोग किया।' समुचित उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
"कबीर सच्चे समाज सुधारक थे," पर प्रकाश डालिए।
अथवा
"कबीर सच्चे समाजदृष्टा तो थे ही किन्तु समाज सुधारक भी थे" क्या आप इस कथन से सहमत हैं? सतर्क उत्तर दीजिए।

उत्तर -

कबीर सच्चे सन्त हैं। अपने समय में वे सभी प्रकार के आडम्बरों का खण्डन करते रहे। उन्हें मानवता प्रिय थी। मानवता के नाम पर जो पाखण्ड चलता है, उससे उन्हें घृणा थी। उच्च कुल में पैदा होने पर भी मानव स्वभाव में गुण और कर्म में यदि उच्चता नहीं है तो कुल की उच्चता उसे उच्च नहीं बना सकती। कबीर कुल को नहीं, शरीर को भी नहीं, सद्गुणों को और सदाचार को महत्व देते हैं। जाति-पाँति छुआछूत आदि की जो मान्यतायें लोक में प्रचलित हैं, वे यथार्थ होने पर ही मान्यता प्राप्त कर सकती हैं अन्यथा कबीर कहता है

'बड़ा भया तो का भया, जैसे पेड़ खजूर।
पंक्षी को छाया नहीं, फल लागत अति दूर ||
ऊँचे कुल का जनिमिया, करनी ऊँच न होय।
सुबरन कलस सुराभरा, साधू निन्दै सोय ॥

इसी आधार पर वे वैष्णवों की प्रशंसा तथा शाक्तों की निन्दा करते हैं

(1) "मेरे संगी द्वै जना, एक वैष्णव एक राम।'
(2) "साकत बाभन न मिले, वैष्णव मिले चंडाल !"

कबीर मन की शुद्धि तथा साधु-सत्संग पर अधिक बल देते हैं।

"मथुरा जावै, द्वारका जावै जावै जगन्नाथ।
साधु संगति हरि भगत बिनु कछु न आवै हाथ ॥

डॉ० रामरतन भटनागर का कथन है - कबीर ने समाज सुधारक का नहीं, बल्कि जीवन गढ़ने को, मनुष्य को गढ़ने का प्रयत्न किया है। कबीर का लक्ष्य था समाज से बुराई को मिटाना तथा अच्छाई को स्थापित करना इसीलिए वे अत्याचारियों और घमंडियों को समझाते हुये कहते हैं

"दुर्बल को न सताइये, जाकि मोटी हाय।
मुई खाल की साँस सो, सार भसम है जाय।।'

वे लोक-कल्याण के लिये दृढ़ संकल्प थे, फिर भी लोक-कल्याण के मध्य गृहस्थ और बैरागी में इनकी दृष्टि में कोई भेद न था-

"बैरागी बिरकत भला, गिरही चित उदार।
दुहुँ चूँका रीता पड़ै, ताकूँ बार न पार।

कबीर सज्जनता एवं शीलत्व को सर्वोपरि मानते थ -

"सीलवन्त सबसे बड़ा, सर्व रतन की खानि।
तीन लोक की सम्पदा, रही सील की आनि।।"

कबीर की साधना का पूर्ण आधार प्रेम है। पाखण्ड एवं ब्राह्माचार प्रेम के मार्ग बाधक प्रतीत होते हैं। इसी कारण उन्होंने सम्प्रदायवाद, जातिवाद, छुआछूत आदि का खुलकर विरोध किया है, इसी को दृष्टि में रखकर डॉ. रामकुमार वर्मा ने लिखा है-

कबीर जिस सन्तमत के प्रवर्तक थे, उसमें बाह्याडम्बर के जितने रूप हो सकते थे, उनकाबहिष्कार सम्पूर्ण रूप से किया है।

वैष्णव के छापा-तिलक आदि बाह्य चिन्हों और आडम्बरों का वे विरोध करते हैं।

(1) "वैष्णव भइया तो का भया, उपजा नहीं विवेक।'
(2) "पंडित हु कै आसन मारै, लम्बी माला जपता है।।

अन्दर तेरे कपट कतरनी, सो भी साहब लिखता है।"

इसी प्रकार पूजापाठ, व्रत रखना, आरती करना आदि को वे गुड़ियों का खेल समझते हैं।

(1) "पूजा सा वह नेम व्रत, गुड़ियों का सा खेल।'
(2) "कर में तो माला फिरै, जीभ फिरै मुख माँहि।'

कबीर के युग में सहजयानी, सहजपंथी का प्रचार किया करते थे। कबीर ने उसकी वाचालता देखी, सहज-सहज कहने के स्थान पर उन्हें सहज पंथ से बहुत दूर पाया, तो उन्हें सहन न हो सका और वे कहने लगे-

"साहिब - साहिब सबही कहै साहिब न चीन्हें कोय।
जो कबीर छिल्या तजै, साहिब कही जे सोय।"

कबीर ने जहाँ-जहाँ पाखण्ड देखा, वहीं उसकी निन्दा की। चाहे जैन हो, चाहे बौद्ध, चाहे शात्य हो, चाहे चारवाक्, चाहे हिन्दू हो, चाहे मुसलमान सबमें वे सदाचार के महत्व को प्रतिष्ठितंदेखना चाहते थे। यदि भगवान सर्वव्यापक है, तो वह क्या सभी स्थान पर मिलेगा?

(1) "जोरे खुदाय मसीत बसत है और मुलुक किहि केरा।"
(2) "काँकर पाथर जोरिके मस्जिद लयी बनाय।'

जन्म से तो सभी शूद्र हैं, संस्कार ही उन्हें द्विज बनाते हैं। संस्कार-शून्य व्यक्ति द्विज़ नहीं बन सकता। इसीलिये कबीर ने लिखा है-

"जो तू बावन बावनी जाया, आनि बाटि है काहे न आया।"

इसी प्रकार छूत अछूत की समस्या पर कबीर लिखते हैं-

"काहे को कीजै पाण्डे छोट विचारा।
छोटई से ऊपजै संसारा।"
कबीर ने मूर्तिपूजा की भी निन्दा की है
"पत्थर पूजै हरि मिलै तो मैं पूजौं पहार।"

कबीर ने हिन्दू और मुसलमान दोनों मतों के पाये जाने वाले आडम्बरों की निन्दा की है। भगवान के नाम पर जो दोनों में संघर्ष हुए हैं, उनकी कड़ी आलोचना की है।

कबीर ने धर्म की अव्यवस्था को देखकर धर्म के ठेकेदारों की बहुत आलोचना की है। मुसलमान कुरान की दुहाई देते थे और हिन्दू वेद वाणी को प्रमाण बताकर अन्धविश्वासों को फैलाने का प्रयास करते थे। इसीलिए कबीर ने जमकर उन्हें खरी-खोटी सुनाया था।

(1) " घर - घर में सदा साई रमता,
कटुक वचन न बोल रे।"

(2)
"सब घर मेरा साइयाएँ, सूनी सेज न कोई।
भाज तिन्हीं का हे सखी, जिन घट परघट होय।"

कबीर की दृष्टि में राम और रहीम, कृष्ण और करीम में कोई अन्तर न था। यदि हमें ब्रह्मा की सच्ची अनुभूति हो जाय, तो सारे धर्मों का संघर्ष समाप्त हो जायेगा।

"हमारे राम रहीम करीमा केसो, अलह रामसति सोई।"

उपर्युक्त उदाहरणों से यह स्वयं सिद्ध है कि कबीर, धर्म के संकीर्ण बाह्याडम्बरों के विरुद्ध थे। इसीलिए उन्होंने उन सभी की आलोचना की है। परन्तु धर्म के उदार एवं उदात्त रूप को उन्होंने स्वीकार किया है। तभी तो वह शाक्तों की बुराई करते हैं और वैष्णवों की प्रशंसा करते हैं। यही नहीं, वैष्णव यदि चंडाल भी हैं, तो उसकी प्रशंसा कबीर ने मुक्त कंठ से की है।

"साकत बाभन ना मिले, वैष्णों मिले चंडाल।
अंकमाल भरि भेटिये, मानौ मिलै गोपाल।"

कबीर की भक्ति भावना समन्वयवादी थी, इसीलिए उन्हें कोई रूढ़िगत विचार ग्राह्य न था, समदृष्टि ही उनके जीवन का सिद्धान्त था, वही उनकी भक्ति भावना का मूलाधार था

"कहौ सो नाम सुनौ सो सुमिरन, खाँ पियो सो पूजा।
गिरह उजाड़ एक सम लेखौं, भाव न राखौ दूजा।"

कबीर ने एक ओर व्यक्ति एवं धर्म के सुधारों के लिए प्रयत्न किया है, जो दूसरी ओर समाज की विभीषिकाओं को भी निर्मूल करने का प्रयास किया है। इसीलिए उन्होंने वर्ण-व्यवस्था का खण्डन किया था-

"जो तेहि कर्त्ता वर्ण विचारा। जनमत तीन दण्ड किन सारा।"

कबीर ने हिन्दू समाज की छुआछूत की परम्परा को समाज के लिए पूर्णरूपेण व्यर्थ समझा था-

"कहुँ पाँडे, सुचि कवन ठाँ जिहिं घर भोजन बैठि खाँ।"

कबीर समभाव में विश्वास रखते थे-

"एक बूंद एक मल मूतर एक चाम एक दाम।'

कबीर के जीवन का आदर्श था, उदार भक्ति-भाव-

'राम बिना संसार धुँध कुहेरा, सिरि प्रगट्या जम का पेरा।

सारांश यह है कि कबीर सत्य के प्रेमी थे। जहाँ सत् है, वहीं धर्म है और वहीं कबीर का हृदय है। उनकी सुधार भावना में समन्वय की स्थिति प्रधान है। पर इतना स्पष्ट है कि वे सत् से असत् का समन्वय कभी न कर सके। साधना पद्धति में भी भारतीय वेदान्त, सूफी साधना-पद्धति, बौद्ध-साधना पद्धति, पदों आदि में किया है। उन्होंने निर्गुण निराकार प्रभु की सूक्ष्म लीलाओं पर प्रकाश तो डाला ही है, साथ ही अवतारी लीलाओं का भी उल्लेख किया है। कबीर संत के परम दर्शन को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्राप्त करना चाहते थे। वे सच्चे समाज सुधारक थे।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सल्तनतकालीन सामाजिक-आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- सल्तनतकालीन केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में प्रांतीय शासन प्रणाली का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- सल्तनत के सैन्य-संगठन पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत काल में उलेमा वर्ग की समीक्षा कीजिए।
  7. प्रश्न- सल्तनतकाल में सुल्तान व खलीफा वर्ग के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
  8. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- मुस्लिम राजवंशों के द्रुतगति से परिवर्तन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजतंत्र की विचारधारा स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के स्वरूप की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- सल्तनत काल में 'दीवाने विजारत' की स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  13. प्रश्न- सल्तनत कालीन राजदरबार एवं महल के प्रबन्ध पर एक लघु लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- 'अमीरे हाजिब' कौन था? इसकी पदस्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  15. प्रश्न- जजिया और जकात नामक कर क्या थे?
  16. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में राज्य की आय के प्रमुख स्रोत क्या थे?
  17. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन भू-राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में सुल्तान की पदस्थिति स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन न्याय-व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- 'उलेमा वर्ग' पर एक टिपणी लिखिए।
  21. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों में सल्तनत का विशाल साम्राज्य तथा मुहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक की दुर्बल नीतियाँ प्रमुख थीं। स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- विदेशी आक्रमण और केन्द्रीय शक्ति की दुर्बलता दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बनी। व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- अलाउद्दीन की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ क्या थीं? अलाउद्दीन के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि उसने इन कठिनाइयों से किस प्रकार निजात पाई?
  24. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार व बाजार नियंत्रण नीति का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण विजय का विवरण दीजिए। उसकी दक्षिणी विजय की सफलता के क्या कारण थे?
  26. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  27. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की विजयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- 'खिलजी क्रांति' से क्या समझते हैं? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  30. प्रश्न- खिलजी शासकों के काल में स्थापन्न कला के विकास पर टिपणी लिखिए।
  31. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का एक वीर सैनिक व कुशल सेनानायक के रूप में मूल्याँकन कीजिए।
  32. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की मंगोल नीति की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
  33. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजनीति क्या थी?
  34. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  35. प्रश्न- अलाउद्दीन की हिन्दुओं के प्रति नीति स्पष्ट करते हुए तत्कालीन हिन्दू समाज की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व सुधार नीति के विषय में बताइए।
  37. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का प्रारम्भिक विजय का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की महत्त्वाकांक्षाओं को बताइये।
  39. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधारों का लाभ-हानि के आधार पर विवेचन कीजिये।
  40. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की हिन्दुओं के प्रति नीति का वर्णन कीजिये।
  41. प्रश्न- सूफी विचारधारा क्या है? इसकी प्रमुख शाखाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके भारत में विकास का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों, विशेषताओं और मध्यकालीन भारतीय समाज पर प्रभाव का मूल्याँकन कीजिए।
  43. प्रश्न- मध्यकालीन भारत के सन्दर्भ में भक्ति आन्दोलन को बतलाइये।
  44. प्रश्न- समाज की प्रत्येक बुराई का जीवन्त विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है। विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  46. प्रश्न- “मध्यकालीन युग में जन्मी, मीरा ने काव्य और भक्ति दोनों को नये आयाम दिये" कथन की समीक्षा कीजिये।
  47. प्रश्न- सूफी धर्म का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।
  48. प्रश्न- राष्ट्रीय संगठन की भावना को जागृत करने में सूफी संतों का महत्त्वपूर्ण योगदान है? विश्लेषण कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी मत की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के प्रभाव व परिणामों की विवेचना कीजिए।
  51. प्रश्न- भक्ति साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भक्ति एवं सूफी सन्तों ने किस प्रकार सामाजिक एकता में योगदान दिया?
  54. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के कारण बताइए
  55. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की क्या दशा थी? इस काल की एकमात्र शासिका रजिया सुल्ताना के विषय में बताइये।
  56. प्रश्न- "डोमिगो पेस" द्वारा चित्रित मध्यकाल भारत के विषय में बताइये।
  57. प्रश्न- "मध्ययुग एक तरफ महिलाओं के अधिकारों का पूर्णतया हनन का युग था, वहीं दूसरी ओर कई महिलाओं ने इसी युग में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करायी" कथन की विवेचना कीजिये।
  58. प्रश्न- मुस्लिम काल की शिक्षा व्यवस्था का अवलोकन कीजिये।
  59. प्रश्न- नूरजहाँ के जीवन चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। उसकी जहाँगीर की गृह व विदेशी नीति के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की दशा कैसी थी?
  61. प्रश्न- 1200-1750 के मध्य महिलाओं की स्थिति को बताइये।
  62. प्रश्न- "देवदासी प्रथा" क्या है? व इसका स्वरूप क्या था?
  63. प्रश्न- रजिया के उत्थान और पतन पर एक टिपणी लिखिए।
  64. प्रश्न- मीराबाई पर एक टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- रजिया सुल्तान की कठिनाइयों को बताइये?
  66. प्रश्न- रजिया सुल्तान का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  67. प्रश्न- अक्का महादेवी का वस्त्रों को त्याग देने से क्या आशय था?
  68. प्रश्न- रजिया सुल्तान की प्रशासनिक नीतियों का वर्णन कीजिये?
  69. प्रश्न- मुगलकालीन आइन-ए-दहशाला प्रणाली को विस्तार से समझाइए।
  70. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व का निर्धारण किस प्रकार किया जाता था? विस्तार से समीक्षा कीजिए।
  71. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व वसूली की दर का किस अनुपात में वसूली जाती थी? ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर क्षेत्रवार मूल्यांकन कीजिए।
  72. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व प्रशासन का कालक्रम विस्तार से समझाइए।
  73. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व के अतिरिक्त लागू अन्य करों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान मराठा शासन में राजस्व व्यवस्था की समीक्षा कीजिए।
  75. प्रश्न- शेरशाह की भू-राजस्व प्रणाली का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  76. प्रश्न- मुगल शासन में कृषि संसाधन का वर्णन करते हुए करारोपण के तरीके को समझाइए।
  77. प्रश्न- मुगल शासन के दौरान खुदकाश्त और पाहीकाश्त किसानों के बीच भेद कीजिए।
  78. प्रश्न- मुगलकाल में भूमि अनुदान प्रणाली को समझाइए।
  79. प्रश्न- मुगलकाल में जमींदार के अधिकार और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मुगलकाल में फसलों के प्रकार और आयात-निर्यात पर एक टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- अकबर के भूमि सुधार के क्या प्रभाव हुए? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  82. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व में राहत और रियायतें विषय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- मुगलों के अधीन हुए भारत में विदेशी व्यापार के विस्तार पर एक निबंध लिखिए।
  84. प्रश्न- मुग़ल काल में आंतरिक व्यापार की स्थिति का विस्तृत विश्लेषण कीजिए।
  85. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापारिक मार्गों और यातायात के लिए अपनाए जाने वाले साधनों का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- मुगलकाल में व्यापारी और महाजन की स्थितियों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- 18वीं शताब्दी में मुगल शासकों का यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  88. प्रश्न- मुगलकालीन तटवर्ती और विदेशी व्यापार का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  89. प्रश्न- मुगलकाल में मध्य वर्ग की स्थिति का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  90. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार के प्रति प्रशासन के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  91. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार में दलालों की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  92. प्रश्न- मुगलकालीन भारत की मुद्रा व्यवस्था पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  93. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान बैंकिंग प्रणाली के विकास और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली हुण्डी व्यवस्था को समझाइए।
  95. प्रश्न- मुगलकालीन मुद्रा प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  96. प्रश्न- मुगलकाल में बैंकिंग और बीमा पर प्रकाश डालिये।
  97. प्रश्न- मुगलकाल में सूदखोरी और ब्याज की दर का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  98. प्रश्न- मुगलकालीन औद्योगिक विकास में कारखानों की भूमिका का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- औरंगजेब के समय में उद्योगों के विकास की रूपरेखा का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- मुगलकाल में उद्योगों के विकास के लिए नियुक्त किए गए अधिकारियों के पद और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान कारीगरों की आर्थिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- 18वीं सदी के पूर्वार्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति की व्याख्या कीजिए।
  103. प्रश्न- मुगलकालीन कारखानों का जनसामान्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
  104. प्रश्न- यूरोपियन इतिहासकारों के नजरिए से मुगलकालीन कारीगरों की स्थिति प

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